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तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ?? : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं ! : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं
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Jindagi
लौट जाती है रात हमारे दरवाज़ों से ख़ालीमन किसने नहीं सुनी उसकी खामोशी
डूबता सूरज टकटकी लगाए हमारी खिड़की पर देता रहा दस्तक ..किसीने नही सूना उसका ख़ालीपन ..फूल मुरझा गए किताबों में दबे पड़े..किसीने नहीं सूनी दास्ताँ उनकी..टूटते हुए तारों क़ो भी कहना था शायद बहुत कुछ..किसी ने नहीं सुना उनको भी सबने बस अपनी ही कहीं ..नहीं सूनी किसीने मुँडेर पर आयीं चिड़ियाँ की ..नहीं सूना किसीने नदियों क़ा संगीत ..
नदीयाँ सुनाती रहीं अपने मिलन क़े गीत .. क़िसी ने जवाब में हाथ नहीं हिलाया ऊन बादलों क़ो ज़ब वो आये थे आंसमा क़ा प्रेम लेक़र ..समंदर रोज़ किनारे पर आकर रोज़ ढूँढता है जा चूके प्रेमी क़े पैरों क़े निशान ..सुनाती है लहरे भी दूर गए प्रेमी की कहानी क़ोई..
कितना कुछ कहाँ गया हमसे ..!!
हम सुनते कहाँ है?
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