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Meera ..
मीरा कहती है मेरे कान्हा मैं जीवन के प्रत्येक पड़ाव पर तुम्हारी "प्रतीक्षा" में रही...तुम मिले तो तुम्हारे प्रत्यक्ष होने की प्रतीक्षा रही... तुम मुझ में ठहरे तो तुमसे प्रेम की प्रतीक्षा में रही... जबकि ये भली भांति जानती थी, की मेरे हर आती जाती श्वास की ध्वनि में तुम हो मेरे इस प्रेम संगीत के सुर और तुम्हारा नाम तुम भली भांति सुन सकते थे ... मगर फिर भी मैंने इस प्रेम को शब्द देने को आतुर रही..
मीरा कहती है कान्हा :मै मीरा रही हमेशा जोगन जैसी ना बन पाई गोपिन जैसी .. ना मै बन पाई तुम्हारी प्रीत सावरे मैं रही हमेशा भक्तिन जैसी.. ना रास भई तुम्हारे संग ना शाम मिली राधा जैसी ...ना मोरपंख बन सज पाई ना नियति थी रुकमिणी जैसी .. मै बन गई गीत इसीलिए
और सज गई अधर पर तुम्हारे बांसुरी जैसी ..!!
मीरा कहती है : मेरे सावरे तुम प्रिय आन मिले ...सब भुलाऊं... मैं इस संसार के सभी रूढि नियमों को तुमको जी भर देखने की चाह में...!
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कान्हा कहते है : मीरा तुम प्रेम पूजारण इक सखी री ..क्षण क्षण सुमिरै कान्हा को और ले राधा का नाम ..तू मिले तो वरदान प्रिये .. बनू में दास तुम्हारा जनम जनम प्रिए ..तू मुझ में खुद को देखे मै तुझमें कहीं खो जाऊं .. !
कान्हा कहते है सुनो मीरा तुमने प्रेम का एक नया आयाम स्थापित किया है .. सच्ची प्रेमिकाओं के लिए किसी नाम के बंधन से अधिक महत्व उनके तन-मन पर प्रेम की प्रगाढ़ता का रंग चढ़ना होता है…..वो नहीं माँगती ऐसा कोई वरदान जो बाँध दे उन्हें किसी बंधन में..वो चाहती है स्वछंदता जिसमें कोई रोक-टोक, कोई सीमा, कोई पहरेदारी न हो उनके अथाह और अनंत प्रेम पर..वो नहीं माँगती अग्नि के समक्ष सप्तपदी के वचन या सात कदम जो साक्षी या प्रमाण हो उनके सात जन्म के साथ का..वो नहीं माँगती अपने प्रियतम की वामांगी होने का वरदान..!
वो चुन लेती हैं अपनी पलकों से सारे काँटें जो उन फूलों भरी राह में किसी कठिन परिस्थिति या किसी शंका या किसी भी अन्य रूप में आ बाधा बनने का प्रयत्न करती हैं…!! वो बैठी रह जाती हैं उसी देहरी पर जहाँ हर साँझ जलाती हैं एक दीपक प्रतीक्षा और प्रियतम के सकुशलता के प्रतिस्वरुप.. जहाँ से दिखता है वो चाँद जो आईना हो जाता है और वो देख पाती हैं अपने प्रियतम का खिलखिलाता चेहरा, वो स्वयं के प्रतिबिम्ब को आलिंगित कर रोम-रोम पर महसूस कर पाती हैं अपने साथी के स्पर्श को…!!
सुनो मीरा... वो संसार से जाने के बाद भी जीवंत रह जाती हैं किसी मंदिर में मेरे के चरणों में चढ़े पुष्पों की तरह...या फिर यूँहीं उग जाती हैं आँगन के किसी कोने में श्यामा तुलसी की तरह जो रक्षा करती हैं अपने श्याम की आने वाली अदृश्य विपत्तियों से..
वो इसी तरह हर बार पा जाती हैं मोक्ष.. इसीलिए है देवी मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं ..!!
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