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तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ?? : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं ! : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं
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SHIV
पता है शिव आज मन हो रहा था गले लगा लू कितनी बार सोचती हूं आपको भूल जाने का पर मेरा प्रेम मुझे इसकी इजाजत नहीं देता ...शायद मेरे हिस्से में ईश्वर प्रेम लिखना भूल गए आपका वो हमे यूं बिखेर कर चला जाना बहुत अखरता है शिव .. मैं चुप चाप ताकती रहती हूं ,उस चांद को ,उस आसमान लो,उस पंखे को ,दीवारों पर रात के अंधेरे में बनाती रहती हूं उंगलियों से आपकी तस्वीर वहीं मुस्कुराते हुए आप..
जानते हो शिव आजकल जब भी मन करता है आपको गले लगाने के आपकी उस तस्वीर को गले लगाती हूं और महसूस करती हूं आपको और आपके स्पर्श को...भीग जाती हूं आंसुओं की बूंदों की बारिश में ,
आपको देखने को , आपसे मुलाक़ात को तड़पता हुआ ये मन बैचेन हो जाता है
शिव आप बिल्कुल उस बारिश की तरह हो जिसके बरसने से मेरे मन की
जेठ दुपहरी में तपती धरती तृप्त हो जाएगी ...!
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