तुम
तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ?? : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं ! : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं
मन भी तुम्हारा म्यान भी तुम्हारी
ReplyDeleteवकत भी तुम्हारा कृपान भी तुम्हारी
ऊँगली भी तुम्हारी निशाना भी तुम्हारा
सोच भी तुम्हारी आशियाना भी तुम्हारा
तो फिर आतातायी खिलजी के लिये
द्वार क्यूँ खोल दिये
क्या करे सर मैं हर बार भरोसा करती रही ..इतना सच्चा झूठ उनका था ...!
Deleteहमे शायद लोगों की पहचान ही नहीं ..!