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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Your eyes

 मुझे तुम्हारी मुंदी हुई पलकों में लगता है कि एक सम्पूर्ण सृष्टि को कल के जन्म को लेकर प्रतीक्षा है 

और में तुम्हारे पलकों पर अपने कांपते हुए होट रख देती हूं जैसे किसी प्यासे ने अपने होठ किसी शांत , 

ठहरे जल पर रख दिए हो ..

शिव आपकी वो झुकी हुई पलकों को कितनी ही बार ऐसे ही चूम लिया है हमने ...नहीं जानती कि क्यों वो आपकी तस्वीर मुझे खीचती है अपनी तरफ यूं लगता कि आप ही बैठे हो मेरे सामने मेरे पास ....! कभी कभी ना आपकी उस दाढ़ी कि चोटियां बनाने का मन करता हमे ... काश कभी हम यूं कर पाते ... आप सोए हो और हम बस यूंही बैठे निहारते रहते ... कितना कुछ 

सब बस ख्वाहिशें रह गई ..! 



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