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कुछ अनकही बाते
कल रात शहर में हल्की बारिश हुई थी..बूंदे खिड़की पर दस्तक दे रही थीं.. और तुम्हारी यादें मेरे दिल पर दस्तक दे रही थी.. शिव तुम पास होते तो ... पता नही सोचती हूं क्या तुम्हे कभी मेरी याद भी आती है ..क्या कभी तुम्हें मेरे आंसु भी दिखाई देंगे ..क्या कभी तुम मेरी ये तड़प महसूस करते हो .. क्या कभी तुम तक मेरे इस दिल की पुकार पहुंचती भी है..कभी-कभी तुम्हे सुनने की तलब लगती है.. तुम्हारी वो आवाज अब तक जहन में गूंजती रहती हैं .. लेकिन कभी तुम्हारी खबर तक हम तक नहीं आती है...और इन यादों के साथ ही मैंने खिड़की खोलकर आँखे मूंद ली और चेहरे पर थपकियाँ देती बूंदों को महसूस करती रही ...कितनी देर तक बस तुम्हारी यांदो में भीगते रहे हम .. मन कर रहा था एक बार पूछ ले शिव क्या जाना जरूरी था ? जानते हो शिव बहुत मुश्किल है, तुम्हे चाहते रहना, तुम्हारे एहसास के बगैर...
खैर... अब समय रेत के जैसे फिसल गया है..तुम तो आगे बढ़ गए पर जब भी मैं मुड़कर देखती हूं तो तुम ही नज़र आते हो, मन करता है लौट आए तुम्हारे पास .. मैं कभी कभी अनासायास ही चल पड़ती हूं तो रास्ते नहीं मिलते हैं.. तुम जैसे मेरी वो अजीज चीज हो जिसे मैंने कही खो दिया है .. पर अब ये भी जानते है खोई हुई चीजें कहाँ मिलती हैं..!
शिव आपको याद है, हमने कितने सारे सपने देखे तो वो अब तक संभाल के रखे है... इन सारे खोने और ढूंढने के बीच हमने बहुत कुछ लिख रखा है..अपनी डायरी में कभी आओ तो पढ़ लेना बहुत कुछ अनकही बाते है जो बस तुम्हारे लिए हैं, अब शायद मेरी ये अनकही बाते कभी तुम तक नहीं पहुंचेगी ... काश तुम पढ़ लेते मेरा प्रेम ..
अजीब-सा सन्नाटा है यहाँ, हवा सर्द है.. तुम्हे पता है, इन दिनों बेचैनियाँ बहुत बढ़ गयी हैं...शायद कुछ रह गया है भीतर..तुम्हारी याद हर रोज नहीं आती है...बस उन लम्हों में आती है, जब हम अकेले होते हैं.. बुरा यह है कि ये लम्हे रोज आते हैं..!
तुमसे करने को छिपा कर कुछ शिकायतें रखी है हमनें.. अब वो शिकायते भी भीतर ही मर रही हैं..सब कुछ थमा हुआ..सीने में उदासियों का बियाबान है.. दूर-दूर सिर्फ तुम्हारे न होने का दर्द है...एक रोज तुमसे मिलकर तुम्हें जी भर कर देखना है..तुमसे कहना है, माफ़ करना.. हम शायद तुम्हे संभाल नहीं सके इसीलिए तुम चले गए ना हां ऐसी ही हूं मैं शायद कभी कुछ संभाल नहीं पाती.... और अब तुम्हारे जाने के बाद खुद को भी खो चुके है .. हमेशा की तरह ढूंढने की कोशिश जारी है .. शिव कभी तुम मिल जाओ शायद हम भी खुद को मिल जाए ..शिव तुम्हे हम ढूंढ़ लेंगे इस बात का कभी कभी यकीन हो जाता है .. और वो टूट भी जाता है ये बात अलग है .. सोचती हूं यूंही चलती रहीं कभी तो आयेंगे तुम तक.. इस अंतहीन-सी हो चुकी जिंदगी के आखिर में...तुम फिर मिल जाओ .. उसी पहली बारिश में, उसी सियारों वाली रात में..वो पश्मीने वाली रात में जब हमने अपने इश्क का स्वेटर बुना था .. या किसी और दुनिया में... तब तक के लिए हो सके तो लौट आओ और चूम लो मेरी उदासियों को... ताकि रो सकें हम;
तुम्हारे लिए..!
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