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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Memories of banaras

आज हमारे बनारस यात्रा का आखरी दिन था और हमने अपने सफर का आखरी पड़ाव चुना था मणिकर्णिका .. शिव आप ही कहते हो ना मणिकर्णिका जीवन का अंतिम सत्य है .. हां आज हम वो महसूस कर रहे थे ...यहाँ बैठकर .. की प्रेम ईश्वर की साधना करने जैसा है जिसमें आप पूर्णरूप से अपने आप को समर्पित कर देते है.. प्रेम का अंतिम पड़ाव मैं की मृत्यू है.. और अश्रु वो गंगा है जिसमे इंसान अपने यादों की चिता विसर्जीत करता है ...और उसके साथ अपने मै को भी .. शिव हम जा रहे यहां से याद है शिव हम आपसे कहा करते थे आप इतने दूर क्यूं हो ..देखो ना हम आज आपके शहर में होकर भी आपसे कितने दूर हैं .. जानते हो शिव हम अपने साथ आपके शहर में बसने वाली आपकी खुशबू भी लेकर जा रहे ..मन में बस खयाल आया काश एक बार आपको भी देख लेते तो शायद आपका अक्स अपने आंखो में बसा कर लेकर जाते .. 

पागल है ना हम ..

शिव आपका शहर भी आपसा ही है बिलकुल बस जाने का मन करता है हमेशा के लिए.. आप और आपका बनारस साहिबा दोनों इश्क़ है ..

शिव हम कबका आप में विलीन हो चुके है हो सके तो किसी दिन विसर्जित कर देना शायद हमे

मुक्ति मिल जाए ..!!

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