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Unsaid words unsent message

There’s a kind of ache that doesn’t scream that doesn’t scream—it lingers quietly in the corners of your heart. It’s the ache of wanting to build something beautiful with someone, and realizing they never saw the same blueprint. Yes, I wanted to build with you. I  returned to you again and again—hoping, believing, trusting that maybe this time, you’d see what I see. That maybe this time, you’d meet me halfway. That maybe this time, we’d rise together. Because I truly believed we could. I saw the potential in us—in our ideas, our synergy, our shared dreams. I imagined a future where our efforts would bloom into something extraordinary. I poured my heart into the work, stayed up late, showed up early, gave my best even when I had nothing left. But you never understood me. You saw my passion as noise. My vulnerability as weakness. My dedication as desperation. And when things got hard, you weren’t there. Not once. You gave me reasons to be laughed at, not lifted. You watched me strugg...

Memories of Banaras

 ‍बनारस और आपका मेरी जिंदगी में आना अचानक से ही था.  बनारस शहर का और मेरा जैसे कोई पुराना रिश्ता सा रहा हो एक कशिश है इस शहर में हमेशा मुझे अपनी और आकर्षित करता है ..उन दिनों जैसे मेरी आदत रही उन दिनों मेरी reading list में आपका लिखा हुआ शामिल था .. पता नहीं बस आपको पढ़ लेते थे अच्छा लगता था .. 

जानते हो पांडेजी तब ना आप अजनबी होकर भी अपने थे 

और आज अपने होकर भी अजनबी ..आज भी याद है हमे वो रात जब हमने जी भर के बाते की थी .. 1 साल बड़े है हम आपसे मैंने कहा तब आपने कहा था दोस्ती की कहा उम्र होती है अरु..! बड़े थे हम आपसे पर आपने अपने रँग में यूं रंग दिया कि कभी लगा ही नहीं कि हम आपके बड़े हैं..! 

मुझे याद है वो जब आपने कहा था जब भी बाते करने का मन हो तो बस फोन घुमा लेना .. और हंसकर हमने कहा कौनसा नंबर लगाए .. और आपने नंबर दिया था 

फिर क्या था..! आपका नम्बर हमने बाबा का प्रसाद समझकर लपक लिया..! नाम तो बताओ अब अपना हमने कहा और आपने कहा था नाम में क्या रखा है .. हमने आपका उस दिन नामकरण किया था शिव .. बनारस से जो थे .. ठेठ बनारसी आपकी भाषा में उस दिन आपके ये आखिरी शब्द, बार बार कानो में गूंजते रहे.. 

बनारसी ..!

फिर क्या था..! उसी दिन से आप हमारे शिव बन गए और हम अरु और शुरू हुआ  देर देर रात तक बतियाने का सिलसिला,..हम बनारस के लिए नए थे

और आप ठेठ बनारसी ..!

आपने ही पहली बार घाट घाट , मंदिर मंदिर घुमाया था हमे..! पहलवान की लस्सी से पप्पू की चाय तक, सब का परिचय आपने ही करवाया था हमे..! 

कोई औपचारिकता नहीं रही थी हमदोनो के बीच में और हम दोनों बनारस की गलियों में घूमने लगे थे .. और शायद उन्ही गलियों में खोने भी लगे थे .. 

खूबसूरत थे वो बनारस के  दिन..!  कभी बीएचयू, कभी अस्सी तो कभी काशी विश्वनाथ.. कभी आप हमे लेकर जाते मणिकर्णिका .. कहते अरु यही जीवन का सच है और हम बस हां में हां मिला देते .. वो गंगा आरती के वक्त आपके आंखो की चमक और हमारा आपकी दाढ़ी को लेकर चिढ़ाना हम जब भी कहते किसी दिन ना आपकी ये बाबा जैसी दाढ़ी की निकाल देंगे हम और आप कहते हम सब कुछ दे सकते पर अपनी दाढ़ी को नहीं ..उन दिनों आपके साथ घूमना,और कुल्हड़ वाली चाय पीने का स्वाद आजतक जेहन में ताजा है.. !

पर जानते हो शिव ! सबसे प्यारी याद है उस फिल्म की, जिसे हमलोगों ने साथ देखा था..

 मसान ..!!

मैंने ट्रेलर में "तू किसी रेल सी गुजरती है" वाली लाइन सुनकर ही इरादा कर लिया था कि आपके साथ ये फिल्म देखने जाएंगे..

जिस दिन देखने जाना था उस दिन हम जल्द ही आ गए थे .. और कहा था शिव जल्दी चलिए हम कुछ भी मिस नहीं करना चाहते हम फ़िल्म देखने गए..! दीपक और शालू की कहानी चल रही थी.. कुछ हमारी ही कहानी की तरह ..

जब शालू की शायरी सुनने के बाद दीपक कुछ समझ नहीं पाता है और सर खुजलाते हुए बोलता है कि ..."अच्छा था...मगर, वो....समझ नहीं आया....." और इसपर शालू कहती है....आप न एकदम बुद्धू हैं..! 

पर अच्छे वाले बुद्धू हैं..!

ये सुनकर हम मन ही मन कहे थे ..."देख लो! ये तुम्ही हो.. हां शिव कितनी ही अनकही बाते थी शायद हम बस मन ही मन कह देते थे.. और आप कहते टेलीपैथी है अरु हमारे पास समझ जाते है हम .. 

तू किसी रेल सी गुजरती है......वाला गाना आया और हम गाना कम, आपको इमोशनल होते हुए ज्यादा देख रही थी .. शायद पहली बार इत्ता इमोशनल देखे थे आपको ..!

दीपक का शालू को रिक्वेस्ट भेजना..!

छोटी हो....इसलिए प्यार आ गया..वाला सीन.... सबकुछ आता गया, बीतता गया और हमने महसूस किया कि आपकी उंगलियां मेरी उंगलियों से जुड़ गई हैं और न जाने कब मेरा सर आपके कंधे पर झुक गया है..!

कहानी बढ़ती रही और फिर अचानक, कहानी में ऐसा मोड़ आया जब लगा कि उस एक क्षण में कलेजे के हजार टुकड़े हो गए..!

वह मोड़ था, जब शालू की मौत हो जाती है और उसके शव  में दीपक को उसकी अंगूठी मिलती है....फिर उसे ही अपनी प्रेमिका का शव  जलाना पड़ता है..! 

ई साला दुख कभी खत्म काहे नहीं होता बे.... कहकर फ़िल्म में जितना दीपक रोया, उससे कई ज्यादा हमदोनो रोए..!

हमारी उंगलियां जुड़ी थीं, आंखे भरी थीं, आवाज में सिसकी भरी थी! हम दोनों चुप थे..! 

निःशब्द थे..!

दीपक ने शालू की अंगूठी पहले गंगा जी में फेंकी और फिर खुद ही उसे खोजने के लिए कूद पड़ा.....और जब बैकग्राउंड में फिर से कलेजा काटने वाला गाना बजा.....

मन कस्तूरी रे, जग दस्तूरी रे....बात हुई ना....पूरी रे!"

हमदोनो ने डबडबाई आंखों से एक दूसरे को देखा..!

उस शाम,पहली बार अंधेरे में भी आपके आंसू दिखाई दिए थे मुझे..! हम रोते हुए आपको बिलख पड़े.. ! फिर आपने अपनी बाहें फैलाई और मुझे गले लगा लिया..!

जब सीन बदला, तभी हमदोनो आलिंगन से अलग हुए..!

इतने दिन से साथ थे हमलोग..पर आपका आलिंगन पहली बार मिल रहा था मुझे.! बहुत सुकून था उस गले लगने में..! 

एक दूसरे की हाथों में फँसी उंगलियों पर हमारी जकड़ और मजबूत हो गई..! और हमने अपना सर आपके कंधे पर लुढ़का दिया और ...इस लाइन के साथ फ़िल्म खत्म हुई....कहते हैं संगम दो बार जरूर आना चाहिए

एक बार अकेले और एक बार किसी के साथ.!!

इस लाइन के आते आते हमारे हृदयों का भी संगम हो चुका था..! फ़िल्म खत्म हो गई थी..! पर मन अब भी शालू और दीपक में डूबा हुआ था..!!

हम वापसी के रास्ते में चुपचाप थे .. पता नही एक अजीब सी उदासी थी ..उस पूरे रास्ते, हमने आपको ही पकड़ रखा था ..इस चुप्पी को तोड़ते हुए आपने आवाज दी

अरु

हाँ....

कुछ बोलो क्या हुआ .....और हमारे मुंह से निकल गया 

शिव आप तो हमे शालू की तरह अचानक छोड़कर नहीं जाओगे न....? कभी नहीं.. आपने कहा अरु मैं हमेशा दूर होकर भी तुम्हारे आसपास ही रहूंगा  !"

और फिर हमने आपको जोर से पकड़ लिया था.. ! 

उस वक्त लगा ये सफर कभी खत्म ना हो ...!


शिव आज आप भले ही हमसे दूर हैं..!!

पर सच कहूं तो जीवन जीने की विधि उस शाम आप और उस फिल्म ने मिलकर मुझे सिखाई और आप चाहें कही भी हों, आप मेरे दिल में उसी तरह सुरक्षित हैं जैसे शालू के सुनाए शेर में....चिराग आंखों में महफूज रहते हैं..!

सुनो पांडेजी ,

आज जब भी आपकी यादें रेल सी गुजरती हैं, 

तो ये दिल पुल सा थरथराता है..!!

~आपकी अरु








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