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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

अधुरा खत

 ‍‍‍‍‍‍‍‍‍प्रिय पांडेजी,⁣⁣

नही तुम्हरा नाम नही लिखेंगे .. वो तुम्हे पुकारने का हक नहीं रहा अब .. मगर जब भी तुम्हें सोचती हूं तुम्हारे नाम का पहला अक्षर दिमाग़ में आते ही प्रेम भर देता है  ..मैं हर बार यूं तो तुम्हे शिव बुलाती हूं पर आज तुम्हे तुम्हारे नाम से पुकारने का मन हुआ मगर फिर मै तुम्हारे नाम के पहले अक्षर तक ही सिमट जाती हु .. शिव कभी कभी लगाता है की मैं तुम्हें अभी तक तुम्हारे नाम के पहले अक्षर तक ही जान पाई हूं लेकिन सोचती हूं तुम्हे जानना अब मेरे लिए जरूरी नहीं मेरे लिए बस जरूरी है तुमसे प्रेम करते रहना .. तुम्हे पता है मुझे लगा था की मैं शायद तुम्हे भूल जाऊंगी.. तुम्हारी तरह .. पर तुम्हारा प्रेम अब भी जिंदा है मेरे लिखे में .. मुझमें और वो दिन ब दिन पहले से ज्यादा अपनी जगह बना रहा .. 

⁣⁣कहते हैं कि प्रेम होना दुनिया का सबसे ख़ूबसूरत एहसास है... मुझे इस बात का सुखद एहसास है कि प्रेम का यह तिलिस्मी शब्द तुम्हारे साथ जुड़ा.. शिव  हमारा जुडना भी इत्तिफ़ाक़ नहीं हो सकता ..मैं यहाँ कोई फिल्मी या बहुत बड़े बड़े वाक्य नहीं कहूंगी कि काएनात की साजिश होती है.. हाँ..! पर तुम्हारा मिलना मेरे लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था..!

मैं जब भी तारों के साथ होती हूं तो उस एकांत में तुम्हारा खयाल अनासायस आ ही जाता है.. तुम्हें पता है शिव मेरी डायरी के पन्ने तुम्हे लिखे हुए अधूरे खतों से भरे पड़े है..कितनी बार सोचती हूं की आज ये खत जरूर पूरा लिख दूंगी ..हां पर आज कल सब कुछ अधुरा सा रख देती हूं .. वो खत और मैं भी आज अधूरे पड़े हैं..सोचती हूं अगर खत पूरा भी लिख दू तो क्या उन्हे कभी पोस्ट भी कर पाऊंगी ? मजाक सा है ना आपके लिए है ये सब ... जानती हूं प्रेम अब कभी कभी सच में अब मजाक सा ही लगता हमे .. और बस खुद की इन बेवकूफियों पर खुद ही हस देती हूं..

फिर एक दिन खिड़की से झांकते  चाँद को देख कर लगा हम ये सब लिखे खत इसे दे तो क्या आप उस चांद द्वारा भेजे गए मेरे पैग़ाम को महसूस कर पाओगे .. मैं  सोचती  हूँ क्या तुम कभी चाँद से भी  बातें करते हो ? ( उससे बाते करने से तुम खोए होगें तो कहा से मिलता होगा वक्त ? ये भी है )

हां तुम चाँद से मेरी तरह बाते  करके थोड़ी ना अपना कीमती समय बरबाद कर रहे होंगे ? कितनी बेवकूफ हूं में जो मेरे मन में  इत्ते सारे वाहियात से खयाल आ रहे 

⁣⁣तुम्हे पता मैं तुम्हें तस्वीर में देख लेती हू लेकिन तुम्हारी छुअन से दूर होती हूं .. कभी कभी मन होता की मेरे प्यार के ये एहसास चांद की किरणों के साथ तुम्हारे पास भेज दूँ

जब तुम छत पर आओगे तब ये सारे एहसास तुम्हे छू ले और ये किरने मेरे प्रेम की साक्षी बनेगी..

⁣⁣कुछ भी कहो शिव तुम्हारे प्रेम ने मुझे वो सब कुछ दिया   जो एक स्त्री को चाहिए होते हैं, तुम प्रेम में चाहत लेकर आए थे, तुमसे अनुराग कब हो गया पता ही नहीं चला.. तुम्हारा प्रेम अब मेरे लिए श्रद्धा भी है और उपासना भी...और अब आलम ऐसा है कि इस प्रेम को मौत तक साथ लेकर चलना है..

कितनी बक बक करती हूं ना  .. अच्छा चलो अब ख़ामोश हो जाती  हूं ..इसे भी अधूरा रख रही तुम ना मेरी खामोशी को पढ़ लेना ..

आशा है की तुम सकुशल हो.. हा तुम्हारे जवाब का इंतज़ार रहेगा.. ये जानते हुए की नहीं आएगा ..

फिर भी 

इत्ता सारा प्रेम तुम्हें..!




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