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यूंही
आशू अपने पिता की वो गलती थी जिसे समाज नाजायज संतान कहता है ..कहते है इंसान को अपनी गलतियां चुभती है और फिर आशू तो हमेशा उनके सामने होती थी .. इसलिए शायद आशू उनके लिए उनकी गलती की बोझ के अलावा कुछ नही थी .. और सौतेली मां उसका तो क्या ही कहा जाए वो कभी उस स्वीकार नही कर पाई थी .. पर इन सब में आशू को कभी समझ नही आया उसकी गलती क्या थी .. उसपर हमेशा गलतियां थोपी जाती अब उसे आदत हो चुकी थी दूसरों की गलतियों में भी अपनी गलती ढूंढने की .. उसके करीब कभी कोई रहा तो बस दादी थी उसकी ..उसे दादी से हमेशा वो सुकून और प्रेम मिल जाता जिसे वो ढूंढती फिरती थी .. आज जब बीमार हूं दादी आपकी याद आ रही है .. आप होती तो कहती आशू उठ जा खाना खा ले .अब अकेले पड़े रहती हूं कमरे में दादी तुम होती तो सुकून था ..
दादी देखो ना फिर से अनाथ हो गए .. कोई नही सुनता हमे वैसे है भी कौन अब .. बस तुम कहती थी ना आशु जब कोई ईश्वर के पास जाता है तो तारा बन जाता ..इसीलिए तारों से ही बाते कर लेती हूं ..सब पागल कहते है हमे ..दादी क्या एक बार भगवान जी से पूछ लोगी की हमारी गलती क्या है ..?
सब कुछ होकर भी अनाथ होना बहुत सलता है
दादी बहुत ज्यादा ..!!
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