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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

कुछ अधूरी बाते

 मुझे लगा था तुमसे दूर जाकर ज़िंदगी को थोड़ा सँवार लूंगी, पर ऐसा हो नहीं पाया.. तुम्हारे बिना जीवन दो पहाड़ों के बीच निकलती किसी कच्ची पगडंडी सा रहा.. पहाड़ों की पगडंडियों में अकेले चलने में कोई मज़ा नहीं..हां तुम्हे मै आज तक नही भूल पाई शिव क्यों इसका जवाब कितनी बार ढूंढा है मैने .. की कैसे कोई इतना ठहर सकता है .. में आपसे कभी मिली भी तो नहीं शिव फिर क्यों मैं हर बार आपका इंतजार करती हूं .. जहा लोग इतने सालों के रिश्ते को भूल जाते है .. मैं हमारा कोई रिश्ता न होते हुए भी आपको भूल नही पाई हां ये बात अलग है की आप मुझे भूल गए हां भूलना लाजमी भी तो था .. हम थे ही कौन आपके ? पर आप आज भी मेरी जिंदगी हो .. आज भी आपकी तस्वीर मेरे मोबाईल की गैलरी में है .. अब तो प्रिंट भी निकाल ले आए है और उसे किताब में संभाल कर रख दिया है .. शिव आज भी जब आपसे बात करने का मन होता तो चुपके से किताब उठा कर बाते कर लेती हूं .. मोबाइल वाली तस्वीर से ये तस्वीर ज्यादा अच्छी लगती पता है शिव ये हमसे बाते भी करती है ..!! 

शिव बस एक ही इच्छा है एक बार हम आपसे मिलना चाहते है बस .. 

इन सांसों के खत्म होने से पहले .. अभी रात के दो बज रहे और हम अब भी बस आपसे ही बाते कर रहे शिव काश किसी दिन सच में आपकी आवाज सुन पाती .. सुन पती अपना नाम आपको पुकारते हुए.. अरु देखो में यही हूं तुम्हारे आस पास हमे दिलासा देते हुए .. 

कितने पागल है क्या सपने कभी हकीकत  भी होते है .. आंखे बंद करती हूं तो कितनी बार खुद को बनारस की गलियों में पाया है मैने आपके साथ .. शिव अगर किसी को कहेंगे हम ऐसे इंसान को भूल नही पा रहे जिसे हमने देखा तक नहीं .. जानते है मजाक ही उड़ाया जाएगा हमारा ..की 

कैसी पगलेट हूं .. 


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