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Dear December ❣️

 डियर दिसंबर, तुमसे इश्क़ क्यों है, ये बताना आसान नहीं ..तुम्हारे आते ही नए साल की गिनती शुरू हो जाती है,पर मेरे लिए तुम सिर्फ एक महीना या तारीख नहीं, एक दरवाजा हो—नए सफर, नई कहानियों और नए रास्तों का जो मेरी मंजिलों के और भी मुझे करीब लेकर जाता है ... तुम्हारी ठंडी हवाएं जब चेहरे को छूती हैं, लगता है जैसे पुराने गमों को उड़ाकर ले जा रही हो.. हर बार उसी मलबे में एक नई राह दिखाई है.. शायद इसलिए मैं तुम्हें हर बार एक उम्मीद की तरह देखती हूं.. तुम्हारे आते ही पेड़ों से गिरते पत्ते मुझे सिखाते हैं, कि कुछ छोड़ देना भी जरूरी होता है आगे बढ़ने के लिए.. तुम्हारी शफ्फाक शामों में, जब सूरज धीमे-धीमे डूबता है, मैं खुद को तुम्हारी गोद में एक बच्ची की तरह पाती हूं.. सहमी हुई, पर भरोसे से भरी...तुम्हारे साथ मैं अपना सारा बोझ हल्का कर देती हूं...तुम्हारी दस्तक हमेशा रहती है, एक दुआ की तरह, एक बदलाव की तरह.. तुम्हारी रूह की सर्दियों में जीते हुए, गुजरे हुए साल के लम्हों को फिर से जीती हूं ... ताकी इस गुजरे हुए साल की यादें छोड़कर आगे नए साल में बढ़ पाऊं .. नई उम्मीदों के साथ .. कुछ साथी जो साथ चल...

Train

 ‍‍‍‍‍‍‍तुम जा रहे थे कही अपनी यात्रा पर हमेशा की तरह और ...तुमने कहा था की सुनो तुम मिलने आओगी बस तुम्हें देखना है और बात करनी है ...मेरे दुसरे सफर की ट्रेन लेट है .. बस तुम आ जाना .. मैं रेलवे स्टेशन पर पहुंची तो ट्रेन लेट थी .. बेचैन सी में तुम्हारे इंतजार में खड़ी और सारा ध्यान उस रेल्वे अनाउंसमेंट की तरह ...वो रेलवे की अनाउंसमेंट, वो आते रेलवे की 

छुक छुक करती रेल की आवाज,चारो तरफ लोगों की भीड़, किसी की बुराई करती दो महिलाएं,प्लेटफॉर्म के किनारे गर्दन निकाल के हसरत से झांकते दो लड़के, जमीन पर चादर बिछा कर सोता हुआ, रात भर सफर में थका मुसाफिर,अपने बच्चे को दूध पिलाती झपकी लेती मां, आपस मे मस्ती मजाक करते, घर से वापस कॉलेज जाते 4-6 लड़के, डंडे से फटकार कर गरीब भिखारी को भगाता जीआरपी का



जवान, फाइन के पैसे को लेके टीटी से मोलभाव करता वो बिना टिकट बुजुर्ग,

और इसी के बीच कानो में एक आवाज़ पड़ती है यात्री गण कृपया ध्यान दे ..और होले  हौले से रुकती रेल के गेट पर खड़े तुम, उस भीड़ में भी मुझे ढूंढती हुई तुम्हारी आंखे ..मैं भी इस भीड़ के अफरा तफरी के बीच डिब्बे की खिड़की में सिर्फ तुम्हारा चेहरा ढूंढ रही हूं .. मैं जहां थी वहा से तुम्हारा डिब्बा आगे निकल चुका था तब मानो यूं लगा कितना फासला है हमारे बीच ..तुम आगे निकल गए हो, मैं तुम्हे उस भीड़ में पीछे ढूंढ रही हूँ,ट्रैन रुक गयी  और तभी मुझे मेरा ही नाम सुनाई देता है,तुम मुझे आवाज दे रहे थे तुम्हारे कदम मेरी तरफ तेज़ कदमों से बढ़ रहे थे और तुम्हे देखते ही मेरी आँखों मे पानी के कतरों के साथ चेहरे पर एक सुकून वाली मुस्कुराहट बिखर गईं.. वो सुकून तुम्हे पाने का ..और उस अब कम होती भीड़ भी में मेरा थम जाना .. तुम्हारी आँखों में चमक के साथ कुछ मोती मुझे नजर आते हैं.. 

बहुत दिनों बाद मिलने के बाद जो संभाले हुई हसी थी वो चेहरे पर आ गई थी अजीब था सब एक तरफ चेहरे पर मुस्कान थी और दूसरी तरफ आंखो में हल्के से मोती ..तुम अपना बैग संभालते हुए मेरे करीब आते हो, चंद क्षणों के लिए हम एक दूसरे की नम आंखों में झांकते हैं.. और कुछ देर के लिए भूल जाते हैं हम इस शोर शराबे को..खो जाते हैं इतनी भीड़ में एक दूसरे मे.. और मुकम्मल हो जाता है हमारा इंतज़ार... जो कबसे से था हम दोनों को..तभी फिर से एक आवाज कानो में पड़ती है.. यात्री गण कृपया ध्यान दे ट्रेन निकल पड़ी थी अपने मंजिल की और  और हम चल पड़ते है कैफे की और वो चाय के साथ की ढेर सारी बाते कब तुम्हारे दूसरे ट्रेन का वक्त हो जाता है पता ही नही चलता हम दोनों को ..फिर से वही स्टेशन की अनाउंसमेंट यात्री गण कृपया ध्यान दे एकदूजे में खोए हुए हमे  संभालती है ...तुम कहते हो मुझे अब जाना होगा अरु ..

हमने हामी भर तो दी पर तुम्हारा हाथ जो हाथों में था उसे छोड़ने का मन नहीं था ..और उसकी पकड़ और मजबूत हो गई .. और फिर चल दिए हम प्लेटफार्म की और तुम चुप से थे .. खोए हुए से .. और आती हुई  ट्रेन को ऐसे देख रहे थे जैसे वो तुम्हे दूर ले जाएगी मुझसे हमेशा के लिए  ..वो तुम्हारी खामोशी कितना कुछ बोल रही थी .. थोड़ी देर पहले आती हुई ट्रेन का अब वही शोर जैसे खामोश हो गया था .. हमने कहा शिव क्या हुआ ? और तुमने कुछ ना कहा .. शिव तुम्हारी ये चुप रहने की आदत न हमे बिल्कुल अच्छी नहीं लगती और वो कुछ सवालों के जवाब अधूरे रह जाए तो अच्छा ये भी .. आज भी तुम मेरे सवाल का जवाब दिए बिना चुप से थे और मै फिर से उलझन में .. की पल भर क्या हुआ जो वो एक दूसरे में खोए हम दोनों अचानक से खामोश हो गए ..और तुमने नम आंखों से हमसे अपना हाथ छुड़ा लिया .. मैंने पूछा वापस कब आओगे शिव .. तुम चुपचाप डिब्बे में चढ़ गए .. और हम तुम्हारी वो नाम आंखे बस देखते रह गए .. वो जाती हुई ट्रेन को मैं देखते हुए में थम गई थी ..


जिदंगी कितनी अजीब होती है ना कुछ घंटे पहले जिन आँखो में आने वाले का इंतजार था .. उन्ही आंखो में जाने वाले की कसक थी .. और वो जाती हुई ट्रेन अपने पीछे छोड़ गई थी एक लंबा इंतजार .. कभी ना खत्म होने वाला ..!!








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