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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

छोड़ी हुई औरते

छोड़ी हुई औरते 

फिर कभी किसी के घर की शोभा नहीं बनती 

वो तो बस बन कर रह जाती हैं हर किसी के

 दिल बहलाने का खिलौना .. !!.

वो ढूंढती है उसका कोई ठिकाना पर हर बार उसे निकाल दिया जाता है किसी किराए दार की तरह ! 

एक दिन वो बन जाती हैं मुसाफिर अपनी ही जिंदगी की जिसकी कोई मंजिल नही  .!!


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