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बाते
क्या हो रहा है
- कुछ नहीं! फिलहाल तो उम्र हो रही है
और बढ़ती उम्र के साथ जिम्मेदारियां भी बढ़ रही है !
सोचता हूं कितना अच्छा होता गर उम्र के साथ इतनी जिम्मेदारियां भी न बढ़ती .. इन जिम्मेदारियों के बोझ के तले ख्वाहिशें कहा दब गई पता नहीं चला ! अब इन ख्वाहिशों की जमी पर उम्मीदों के महल बनाया है जिसे बस सजाए जा रहे!
- सही है कुछ तो हो रहा है
- हम्म! ऐसा कह सकते हैं
और क्या यह उम्मीदों का महल सुंदर नहीं लगता तुम्हें..??
- हम्म! अभी देखा जाए तो यही सुंदर है
- हह्ह्! कितना अजीब है ना इतना समय बीत गया
और हम इन उम्मीदों के महल को सजाने में व्यस्त थे
और समय के लगातार बीतने को कभी देख नहीं पाए.. इस महल के खुशियों को जीना भी भूल गए!
- समय जब बीत रहा होता है हम उस पर ध्यान कहाँ देते हैं ...हम तो बस भागते रहते इन खुशियों के लम्हों में ठहरना आता कहा है .. खैर!
आओ अब पास !!
: मुझे तुम्हारे साथ लम्हों में जीना अच्छा लगता है जानती हूं तुम्हारे पास वक्त नहीं होता .. मगर ये छोटे छोटे लम्हे खुशियां दे जाते है !
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