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Conversations
सुनो ढेरो सारे सवाल पूछने है तुमसे !!
कई बार तुम्हे जानने की इच्छा होती है .. फिर याद आता है तुमने कहा था रहने दो ऐसे ही मैं किसी के समझ से परे हूं , पर तब मैं फिर तुमसे कहना चाहती हूं क्यों तुम भी तो इंसान हो क्यों खुद को इतना उलझा दिया है तुमने , क्यों तुम ऐसे जताते हो जो की तुम हो ही नही , ये सारी बाते करते वक्त तीव्र उत्कंठा होती है तुम्हें देख लेने की, पा लेने की, छू लेने की, महसूस कर लेने की...कभी कभी सोचती हूं की तुम जब सामने आओगे तो सबकुछ कह दूंगी तुमसे.. बताना चाहती हूँ कि तुमसे , तुम्हारी तस्वीर से बातें करते सो जाने की आदत सी लग चुकी है पिछले कुछ दिनों से...तुम्हे जितना जाना है उनकी कहानियां बुन लेती हूं, तुमने कही हुई कहानियों को लोरी की तरह सुनती हूँ...तुम्हे पता है तुम्हारी तस्वीरों में तुम्हारी आंखों की मुस्कुराहट और कहानियों में ख़ुद को ढूंढती रहती हूँ,पर अफ़सोस कि दोनों नहीं मिले कभी,या शायद थे ही नहीं कभी...
कई बार मन में आता है कि तुम्हें सामने बिठाकर तुमसे तुम्हारा पूरा जीवन बांट लूं पर ये मुमकिन भी तो नहीं तुम कभी खुद बाटते भी तो नही हो .. डरते हो खुद के को जाने से खुद से बहुत ज्यादा प्यार करते हो ना खुद से...
बहुत बार मन होता है पूछूं तुमसे कि तुम्हारे बचपन की सबसे पुरानी याद क्या है?क्या तुम तुम भी मेरी तरह रोए थे जब पहली बार स्कूल गये होगे?कैसे थे तुम्हारे सब बचपन के साथी और कैसी दिखती थी तुम्हारी वो सहेली?क्या शरारतें करते थे तुमलोग साथ में?क्या सपने थे उस वक़्त तुम्हारे और कैसे उन सपनों के रास्ते बदल गए? कैसे तुम आज वहा जहां अभी तुम हो? किस तरह तुमने संभाला ख़ुद को और औरों को उन मुश्किल घड़ियों में जहा लोग टूट जाते है और क्या तुमने कभी से बांटा अपना दर्द?किसने तुम्हारी मुस्कानें हर बार तुम्हें वापस दिलाई और क्या मायने रखते हैं वे तुम्हारे लिए?कैसे तुम सबकी चाहतों और नफरतों से ख़ुद को दूर रख लेते हो? क्या तुम्हे कभी बहुत सारी बाते करने का मन नहीं होता ? या तुम्हे ऐसे ही तुम्हारी ही बाते करना पसंद है ? क्या पसंद है तुमको और कौन सी बातें सहन नहीं होतीं?कैसे बिताते हो अपने उदासी वाले दिन और रतजगों के पहर? किन्हें पढ़ते हो जब लिख नहीं रहे होते और किसे सोचते हो जब लिख रहे होते हो?सुनसान सड़कों पर कौन तुम्हारी बायीं ओर चलता है और भरी भीड़ में भी किसके बिना अकेले होते हो?
सीधी कैमरे को देखती तुम्हारी बहुत सारी तस्वीरों में किसकी परछाई होती है और क्यों तुम उन तस्वीरों में कभी मुस्कुराते नहीं? और मुस्कुराते भी हो तो इतनी झूठी मुस्कान लाते कहा से हो ? क्या तुम्हे याद है की कब तुम दिल खोल कर हसे थे ? तुम्हारी उस काली शर्ट की बटन टूटने पर कौन लगाता है उसे? जो तुम्हे बहुत पसंद है !
किन शहरों में मन को छोड़ आए हो और किन शहरों को अपने मन का हिस्सा बनाना चाहते हो?कौन सी बातें हैं जिन्हें चाहकर भी भूल नहीं पाते और क्या यादें बनाना चाहते हो जो कभी न भूलें?
जानती हूं पागल हूं और ये मेरे सारे सवाल बेवजह के और बचकाने से है ? और ये भी जानती हूं की तुम्हे इतने सारे सवाल पसंद भी नही ! तुम कभी नही चाहते की तुम्हारे इतने करीब भी कोई आए की तुम्हे जान ले ! और मैं ये भी जानती हूं की ये सारे सवाल कभी तुमसे पूछ नहीं पाउंगी और किसी दिन पूछ भी लूं तो तुम भाग जाओगे दूर मुझसे.. पर मैं चाहती हूं की कभी जब भी तुम अकेले हो तुम्हारे पास वक्त हो ( जो तुम्हारे पास कभी नही होता) एक पल रुककर ख़ुद से पूछो यही सवाल...याद करो कि क्या कभी किसी ने जानना चाहा था ये सब?क्या तुमने ये किसी को बताया भी था?क्या किसी ने सब्र से सुना है तुमको?क्या तुम्हें ख़ुद भी मालूम हैं इन सारे सवालों के जवाब?
जिनमें तुम्हारे पूरे जीवन का लेखा जोखा हो !!
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