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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

सुकून

इस दौड़ते शहर के शोर में मैं तुम्हे तलाशती हूं ,मन तुम्हारी और दौड़ा चला आता है मेरा सारा अव्यक्त, सारे अनकहे के बीच तुम्हारा एक ख्याल आना सुकून सा दे जाता है...!! 

जानते हो शिव तुम ठहराव हो मेरा ..

तुम इश्क़ हो मेरा !! 

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