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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Bashir badra

 हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए 


चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाए 


कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए 


तुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए 


अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर 


मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए 


समुंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दे हम को 


हवाएँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए 


मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा 


परिंदा आसमाँ छूने में जब नाकाम हो जाए 


उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो 


न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए 


बशीर बद्र

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