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Love

  बैठा हूँ उसी छत के कोने में, जहां कभी हम दोनों बैठा करते थे। वो चांद, वो सितारे, आज भी वहीं हैं, पर अब उनकी रौशनी कुछ फीकी लगती है.. तब कुछ बातें तुम्हारी होती थीं, और हम हल्के से मुस्कुरा देते थे.. तुम्हारी आंखों में शर्म का वो प्यारा सा एहसास, अब सिर्फ एक याद बनकर रह गया है.. वो चांद अब भी वही है, पर उसकी चांदनी में वो पहले सी चमक नहीं.. तारों की टोली भी अब कुछ अधूरी लगती है, जैसे हमारे रिश्ते की तरह कुछ कम हो गई हो.. कभी ये जगह हमें सुकून देती थी, अब बस यादों का भार लिए चुपचाप खामोश खड़ी है.. जहां कभी बातें होती थीं,वहा अब बस ख़ामोशियाँ घिरी रहती हैं.. यादों की गीली लकड़ियाँ, मन के किसी कोने में धीमे-धीमे सुलगती रहती हैं वो ठंडी आहटें अब भी हैं, पर वो गर्मी जो दिल को छूती थी, कहीं खो गई है आंखें अब पसीजती नहीं, वो आंसू भी शायद थक गए है.. बस एक भारीपन है, जो इस जगह से निकलने का नाम ही नहीं लेता.. अब इस छत पर आना, सुकून कम और दर्द ज़्यादा देता है.. वो समय तो बीत गया, पर यादें आज भी यहां की हर ईंट में बसी हैं.. शायद, कुछ चीज़ें वैसे ही रह जाती हैं— मद्धम, अधूरी, जिन्हें समय भी बदल नह

Emotions of Daughters

Daughters

एक घर की चार दीवारों में,

बंधी रही वो बेटी अनगिनत सवालों में..

पिता के घर में पिता और भाई की मर्जी से,

ढलती रही वो उनकी खुशियों की खातिर..


पति के घर में पति की आवाज़ से,

चलती रही वो उनकी राहों पर...

कभी ना पूछा गया, "तुम क्या चाहती हो?",

उसकी खुद की ख्वाहिशें रह गईं अधूरी..


उसके अपने सपने, उसकी अपनी उम्मीदें,

दब गईं उसके अपने ही घर की चाहतों में..

क्या वो नहीं चाहती थी उड़ान भरना?

क्या वो नहीं चाहती थी अपनी पहचान बनाना?

आज भी वो पूछती है खुद से,

क्या मेरी भी कोई ख्वाहिश हो सकती है?

क्या मेरी भी कोई आवाज़ हो सकती है?

क्या मैं भी अपने लिए जी सकती हूँ?


ये ब्लॉग उन सभी लड़कियों के लिए है,

जिन्होंने कभी नहीं पूछा, "मैं क्या चाहती हूँ?"

उनकी अनसुनी ख्वाहिशों को समर्पित,

एक कदम उनकी आवाज़ बनने की ओर..

मुझे आशा है कि यह ब्लॉग उन सभी लड़कियों की भावनाओं को व्यक्त करता है जिन्हें कभी नहीं पूछा गया कि वे क्या चाहती हैं। यह उनकी आवाज़ को बुलंद करने का एक प्रयास है..!

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