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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Dreams

 ‍मैं हमेशा डॉक्टर बनाना चाहती थी अपने पापा की तरह क्योंकि पापा मेरे आदर्श थे , पर शायद उन्हें मेरा उनके जैसा बनाना कभी मंजूर नहीं था क्योंकि मैं लड़की थी ..फिर तो मेरे पास बनने के लिए कुछ नही था ? दिशाहीन सी मैं हमेशा खुद को तलाशती रही कभी ये बनी तो कभी ये मजे की बात ये है कि मैं कभी डॉक्टर नहीं बन पाई ...

और तब से एक सवाल ने  मेरा पीछा कभी नहीं छोड़ा अगर डॉक्टर का बेटा डॉक्टर बन सकता है तो डॉक्टर की बेटी डॉक्टर क्यों नहीं बन पाती ..!! 

Hmm अब वक्त बदल चुका है पर सोचती ये थोड़ा पहले बदलता तो ? क्या मैं आज डॉक्टर होती ??  फिर एक बस नया सवाल है ...!! 


 हमेशा हमारी नाकामयाबियों का ठीकरा वक्त पर फोड देते है .. और कामयाबी ? कामयाबी हमारे मेहनत का फल होता है ! वक़्त तो हमेशा अपनी जगह था हमे बाद हमारे फैसले बदलने थे !


एक चराग़ और एक किताब और एक उम्मीद असासा

उस के बा'द तो जो कुछ है वो सब अफ़्साना है ...!!

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