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Dear December ❣️

 डियर दिसंबर, तुमसे इश्क़ क्यों है, ये बताना आसान नहीं ..तुम्हारे आते ही नए साल की गिनती शुरू हो जाती है,पर मेरे लिए तुम सिर्फ एक महीना या तारीख नहीं, एक दरवाजा हो—नए सफर, नई कहानियों और नए रास्तों का जो मेरी मंजिलों के और भी मुझे करीब लेकर जाता है ... तुम्हारी ठंडी हवाएं जब चेहरे को छूती हैं, लगता है जैसे पुराने गमों को उड़ाकर ले जा रही हो.. हर बार उसी मलबे में एक नई राह दिखाई है.. शायद इसलिए मैं तुम्हें हर बार एक उम्मीद की तरह देखती हूं.. तुम्हारे आते ही पेड़ों से गिरते पत्ते मुझे सिखाते हैं, कि कुछ छोड़ देना भी जरूरी होता है आगे बढ़ने के लिए.. तुम्हारी शफ्फाक शामों में, जब सूरज धीमे-धीमे डूबता है, मैं खुद को तुम्हारी गोद में एक बच्ची की तरह पाती हूं.. सहमी हुई, पर भरोसे से भरी...तुम्हारे साथ मैं अपना सारा बोझ हल्का कर देती हूं...तुम्हारी दस्तक हमेशा रहती है, एक दुआ की तरह, एक बदलाव की तरह.. तुम्हारी रूह की सर्दियों में जीते हुए, गुजरे हुए साल के लम्हों को फिर से जीती हूं ... ताकी इस गुजरे हुए साल की यादें छोड़कर आगे नए साल में बढ़ पाऊं .. नई उम्मीदों के साथ .. कुछ साथी जो साथ चल...

ठीक तुम्हारे पीछे - मानव कौल book review in my words

मानव कौल मेरे पसंदीदा  लेखकों मैं से एक है हाल में उनकी किताब "ठीक तुम्हारे पीछे" पढ़ी यह किताब  हमें एक ऐसी यात्रा पर ले जाती है जो हमारे भीतर के अनकहे भावनाओं और रिश्तों के उलझाव को बड़ी गहराई से छूती है..यह किताब उन छोटी-छोटी यादों, अनुभवों और घटनाओं का संग्रह है, जो किसी न किसी रूप में हमारे जीवन का हिस्सा बन जाती हैं..!


कहानी में मानव ने बेहद सरल और सहज भाषा का प्रयोग किया है, जो पाठकों को सीधे उनके अनुभवों से जोड़ती है.. "ठीक तुम्हारे पीछे" में लेखक ने मानवीय रिश्तों की नाजुकता और उनके बदलते रूपों को दर्शाया है.. कहानी के पात्रों के माध्यम से जीवन की अस्थिरता, प्रेम की अधूरी संभावनाओं, और समय के साथ बदलते संबंधों को बहुत संवेदनशीलता के साथ उजागर किया गया है..!


मानव कौल की यह किताब एक आत्मविश्लेषण की यात्रा है.. यह हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हम जो निर्णय लेते हैं, जो बातें अनकही रह जाती हैं, और जो भावनाएँ हम भीतर दबाकर रखते हैं, वे कैसे हमारे जीवन को प्रभावित करती हैं..!


कहानी में गहराई के साथ एक नाज़ुक भावनात्मक प्रवाह है, जो हर पाठक को कहीं न कहीं छू जाता है.. "ठीक तुम्हारे पीछे" सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि जीवन के कई अनसुने और अनछुए पहलुओं का प्रतिबिंब है..!!


यह किताब उन लोगों के लिए है जो जीवन की जटिलताओं और रिश्तों की परतों को समझने और महसूस करने की क्षमता रखते हैं...मानव कौल की यह रचना पाठकों को सोचने पर मजबूर करती है, और पढ़ने के बाद एक ऐसी छाप छोड़ती है जो लंबे समय तक दिल में बसी रहती है..!

तुम्हें पा लेने की चाह में,

खुद को खोने का डर भी था,

पर इस सफर में,

मैं बस चलता रहा...

ठीक तुम्हारे पीछे..!!



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