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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Love

 

बैठा हूँ उसी छत के कोने में,

जहां कभी हम दोनों बैठा करते थे।

वो चांद, वो सितारे, आज भी वहीं हैं,

पर अब उनकी रौशनी कुछ फीकी लगती है..

तब कुछ बातें तुम्हारी होती थीं,

और हम हल्के से मुस्कुरा देते थे..

तुम्हारी आंखों में शर्म का वो प्यारा सा एहसास,

अब सिर्फ एक याद बनकर रह गया है..

वो चांद अब भी वही है,

पर उसकी चांदनी में वो पहले सी चमक नहीं..

तारों की टोली भी अब कुछ अधूरी लगती है,

जैसे हमारे रिश्ते की तरह कुछ कम हो गई हो..

कभी ये जगह हमें सुकून देती थी,

अब बस यादों का भार लिए चुपचाप खामोश खड़ी है..

जहां कभी बातें होती थीं,वहा अब बस ख़ामोशियाँ घिरी रहती हैं.. यादों की गीली लकड़ियाँ,

मन के किसी कोने में धीमे-धीमे सुलगती रहती हैं

वो ठंडी आहटें अब भी हैं,

पर वो गर्मी जो दिल को छूती थी, कहीं खो गई है

आंखें अब पसीजती नहीं,

वो आंसू भी शायद थक गए है..

बस एक भारीपन है,

जो इस जगह से निकलने का नाम ही नहीं लेता..

अब इस छत पर आना,

सुकून कम और दर्द ज़्यादा देता है..

वो समय तो बीत गया,

पर यादें आज भी यहां की हर ईंट में बसी हैं..

शायद, कुछ चीज़ें वैसे ही रह जाती हैं—

मद्धम, अधूरी,

जिन्हें समय भी बदल नहीं पाता..

और हम, बस 

उन्हें देख कर,

खामोशी से मुस्कुरा देते हैं...!!


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