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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

रिश्ता

कुछ अनसुलझी सी उलझनों पे लिखेंगे, तो कुछ बिखरे हुए रिश्तों पे लिखेंगे!
कुछ मेरे जैसे गुन्हेगारों पे,  तो कुछ तेरे जैसे फरिस्तों पे लिखेंगे!!
कुछ पल पल बदलती दुनिया पे, तो कुछ ठूंठ बनके खड़े दरख़तों पे लिखेंगे!!
कुछ पंख फड़फड़ाती उम्मीदों पे, तो कुछ दम तोड़ती हसरतों पे लिखेंगे|
कुछ न कुछ तो लिखना होगा, किसी न किसी मामलात पे लिखेंगे
कुछ तेरी बात पे लिखेंगे, कुछ मेरी बात पे लिखेंगे!
कुछ तेरी बात पे लिखेंगे, कुछ मेरी बात पे लिखेंगे!

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