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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

कतरा - कतरा!!

क़तरा - क़तरा बह रही हूँ
बर्फ से दरिया बन रही  हूँ

दिले समंदर सूरज ने सोखा
अब तेज़ाब बन बरस रही हूँ

ज़ख्म से अंदाज़ा लगा लो
मै कितना दर्द सह रही  हूँ

खामोशी पढ सको तो पढ़ो
मै तुमसे क्या कह रही हूँ

मेरे अंदर इक वीराना घर है
मुद्दतों से वहीं रह रही हूँ

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