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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Jindagi....

जिन्दगी पर लिखी कुछ बाते शायद आपको अपनी ही जिन्दगी के आईने दिख जाये, वैसे तो मैं भी नहीं जानती जीवन का सच लेकिन फिर भी कहती हूँ, जिन्दगी हर पल बदलती हैं, हर पल सिखाती हैं, कभी सहेली, तो कभी दुश्मन बन जाती हैं लेकिन सच हैं दोस्तों, जिन्दगी ही जीना सिखाती हैं....

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