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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Morning...

कुछ सुबहें
बीती शामों की शक्ल लेकर आती हैं
बिल्कुल हूबहू ,घंटों का फ़ासला होता है
मगर... रंगों का फैलाव वही, छटा वही..
पक्षियों का कलरव भी वही
मगर .....फ़र्क़ होता है दोनों में
एक बीते दिन के अस्त होने का प्रतिबिम्ब
तो दूसरा नयीं आशाओं के उदय का पर्व...!!

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