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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Rishta

काश कभी ऐसा हुआ होता की हम पूछते क़ि "कैसे हो" और तुम ये कहने के बजाय क़ि "ठीक हूँ।" अपने पूरे दिन का हाल कह डालते ।

काश तुम मेरे ज्यादा जोर देकर पूछने पर बता डालते अपने सारे दुख दर्द और मैं समझती की तुम मुझे अपना हमदर्द समझते हो पर तुमने कभी भी अपना हाल बयां नहीं किया....सिवाय दो शब्दों के जवाब की....."तुम अपने पर ध्यान दो। "

मुझे लगने लगा कि मै तुम्हारे लिए बोझ हूँ जिसे तुम जबर्दस्ती ढोते हो। इधर काफी दिनों से लगने लगा की तुम बोझ से मुक्त होना चाहते हो तो.......तो मुझे तो तुम्हारी हर इच्छा पूरी करनी थी तो बस हम निकल लिए तुम्हारी दुनिया से, चाहे तुम मुझे अपनी दुनिया का एक भी कोना ना दो पर पर मेरी दुनिया तुम ही हो और हमेशा रहोगे । तुम शायद नहीं समझोगे की तुमसे ही मेरी दुनिया शुरू होती है और तुम पर ही खत्म और हमेशा ही रहेगी...चाहे तुम साथ हो या न हो.... 

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