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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

River .....

दिल करता है,कभी यूँ ही अकेले किसी नदी के एक किनारे को पकड़ कर दूसरे से मिला दूँ,और अगर न मिला सकूँ तो दो पल उसके साथ बैठ कर उसके दुःख में शामिल हो लूँ। उससे अपने दुख साझे कर लूँ।कहूँ कि सुनो बहन, खुद को इस दुःख में अकेली न गिनना। मैं भी हूँ ,तुम सी ही, सैकड़ों तूफान बटोरे,असँख्य आँसू समेट लेकिन सतही तौर पर शांत सी।मेरे दुःखों की इकलौती गवाह,तुम्हें निशानी के तौर पर देती हूँ मैं अपने आँसू । जानती हूँ एक तुममें ही वो गुण है,जो इस दर्द को सबकी नज़रों से छिपा के भी संभालने के लिए चाहिए।
एक तुम ही हो जो मेरे दुख को अपने दुख से मिला लोगी और फिर ऐसे शांत हो जाओगी जैसे कुछ हुआ ही न हो। आज मैं समझ गई लोग तुम्हे मां क्यों कहते है क्योंकि तुम सब कुछ समा लेती हो।

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