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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

फिर वहीं शाम

चलो,आज फिर चलते है दोनो वही, छत के ऊपर जहाँ देखा करते थे हम दोनो ढलती शाम ,तुम अक्सर मेरे बाजू मे बैठकर उंगली के इशारे से बताते रहते थे कि तुम्हें ढलती शाम बहुत पसंद है ,और तुम्हारी पसंदगी ही तो मेरी
पसंदगी थी ,तुम ढलती शाम को देखकर मुस्करा
देते थे और मै तुम्हें देखकर..
तुम घंटों घंटों मुझसे बाते किया करते थे और मै बैठी रहती थी न जाने कितनी देर ,न जाने कितने घंटे... !
और आज फिर ढलती शाम को देखकर जी चाहता है कि तुम कहो ,बैठ जाओ न और मै फिर बैठ जाऊं ,तुम्हारे पास बस..कुछ देर के लिए ..
बस.. कुछ पल के लिए...!

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