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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Afternoon

किसी उदास दोपहर में हम चाहते हैं एक कंधा जिस पर सिर टिका कर थोड़ी देर के लिए आँखें मूँद ले.

कोई ऐसा शख़्स जिसको कॉल करके ये बता सके कि आज मन नहीं लग रहा. हम मिल सकते हैं क्या?

एक सीना जिससे लग कर बस उसकी धड़कनों को बिना कुछ बोले सुनते रहें....

उस किसी के होने को महसूस करते रहें.
कोई हो कि जिसके गले से लग कर सब भुल जायें.

ख़्वाहिशें...
जो छोटी ही होती हैं न वही पूरी नहीं हो पाती बाक़ी तो सब मिल ही जाता है.....!!


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