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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

December aur January

कितना अजीब है ना, दिसंबर और जनवरी का रिश्ता? जैसे पुरानी यादों और नए वादों का किस्सा...एक अन्त है, एक शुरुआत जैसे रात से सुबह,और सुबह से रात...एक में याद है, दूसरे में आस,एक को है तजुर्बा, दूसरे को विश्वास...

दोनों जुड़े हुए है ऐसे, धागे के दो छोर के जैसे,पर देखो दूर रहकर भी साथ निभाते है कैसे...जो दिसंबर छोड़ के जाता है उसे जनवरी अपनाता है,और जो जनवरी के वादे है उन्हें दिसम्बर निभाता है...
दोनों ने मिलकर ही तो बाकी महीनों को बांध रखा है,अपनी जुदाई को दुनिया के लिए एक त्यौहार बना रखा है...!

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