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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Ghar....

मुझे बनाना है एक घर तुम्हारे संग,

जिसके दरवाज़े पर लटकती हो झालरें ठीक वैसे,जैसे किसी नयी नवेली दुल्हन के माथे पर झूलता है माँग टीका....

जिसकी खिड़कियों में छलनी की तरह कसी हो जालियाँ, जहाँ से हर रोज़ दुआ माँगेंगे,लम्बी उम्र की हम...
एक घर जिसकी बालकनी में लटक रही होंगी कई बेलों की तारे

मुझे बनाना है एक घर,
जिसमें तुम्हारे साये भी मुझसे बात करते हों...!!


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