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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Prem

मैंने जब तुझको पहना
दोनों के बदन अन्तर्धान थे
अंग फूलों की तरह खिल गए
और रूह की दरगाह पर अर्पित हुए
तू और मैं हवन की अग्नि
तू और मैं सुगंधित सामग्री
एक-दूसरे का नाम
होठों पर आया
तो वही नाम पूजा के मंत्र थे....
यह तेरे और मेरे अस्तित्व का एक यज्ञ था
धर्म-कर्म की गाथा
तो बहुत बाद की बात है

~ अमृता प्रीतम

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