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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Tum...

सुबह की गुनगुनी धूप और तुम एक जैसे ही हो 
मन को मोह लेते हो ..तुम्हारा प्यार भरा आगोश और ये सुनहरी सतरंगी धूप ..

दोनों की तासीर एक जैसी ही है ..समेट लेती है मुझे अपने आप में.. और मैं उस गुनगुने एहसास को महसूस कर प्यार की अनुभूति में डूबती उतराती रहती हूँ ..!
असीम शांति में खो जाती हूँ ,एक निडर पक्षी की तरह ... 

कितना शीतल, शांत और अविचल है तुम्हारा प्यार...!!

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