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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Barsat ...

कुछ बारिश बेमौसम होती हैं..और भीगने वाला भी इस अचानक आई बेवजह बूँदों को हमेशा याद रखता हैं ..!

जैसे तुम्हारे घर पर अचानक मेरा आना और मेरा मनपसंद हलवे का बनना..

इत्तफ़ाक...!!

खैर मौसम था ..बरस गया..पर भीगी हूई छत और उसकी मुंडेर पे आज भी ...

वहीं रातरानी के गुच्छें महकते हैं ..जिनके नीचे ..एक उम्र गुजारी थी...

नादान सी...!!


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