Skip to main content

Featured

तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

प्रेम...

सुनो ,

अगर सच है..अस्तित्व आत्मा का,
अगर प्रमाण है..रूह की मौजूदगी का,

तो तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम भी..भ्रम तो बिलकुल नही है...

मानती हूँ..

बंधन बांध देता है..जीवन को जन्मों से,
पर तुम्हें कभी मैने..खुद से बंधने पर मजबूर नही किया, प्रेम बांधता नहीं मुक्त करता है शायद ये बात तुम समझ नहीं पाए ..

और रही मेरी बात..

तो ये सच है..कि तुम..

"मोक्ष" हो मेरा....!!


Comments

  1. मैं बन जाऊं शंकर (शंकराचार्य)
    पैंट से अलग कर दूं,धागा,कपड़ा और बकरम को...
    जैसे शंकर ने अलग किया सबको..
    ईश्वर,माया,जीव को..जब माया ख़त्म तो
    जीव पूर्ण ब्रह्म...
    या बन जाऊं कृष्ण,खेलूं भी सबसे..
    फिर बना दूं सबको पूर्ण ब्रह्म...
    बात दोनों एक ही है...

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular Posts