तुम
तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ?? : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं ! : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं
मैं बन जाऊं शंकर (शंकराचार्य)
ReplyDeleteपैंट से अलग कर दूं,धागा,कपड़ा और बकरम को...
जैसे शंकर ने अलग किया सबको..
ईश्वर,माया,जीव को..जब माया ख़त्म तो
जीव पूर्ण ब्रह्म...
या बन जाऊं कृष्ण,खेलूं भी सबसे..
फिर बना दूं सबको पूर्ण ब्रह्म...
बात दोनों एक ही है...
🙏🙏
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