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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Dream

शहर के कोलाहल से दूर...नीरवता में गंगा की लहरों की आवाज़ सुनना चाहती हूं... मैं तुम्हारे सीने पर अपना सर रख उन लहरों के संगीत के साथ तुम्हारी धड़कन का संगीत सुनना चाहती हू .. उन धड़कनों में गूंजता मेरा नाम ..

और तुम खोए हुए अपनी सिगरेट के साथ ..तुम्हारे सिगरेट का वो धुआ मुझे किसी सुबह के यज्ञ के धूनी की तरह लगता है ... यज्ञ जो हमारे प्यार का है ...उस यज्ञ से पृथक हुई तुम्हारी जटिलता, तुम्हारा मौन, तुम्हारी गहराई ,तुम्हारे हृदय
की रिक्तता मैं सब अपने पास रख लेना चाहती हूं ...

तुम्हारा हाथ थामे सूरज को उगते हुए देखना चाहती हूं...चिड़ियों के कलरव के संग गुनगुना चाहती हूं कोई राग...
सर्दी की किसी सुबह... कुल्हड़ से सुरुक -सुरुक कर पीना चाहती हूं तुम्हारी जूठी मलाई वाली चाय के चंद घूंट....
एक ही शॉल में लपेटना चाहती हूं ख़ुद को तुम्हारे साथ...
भोर की लालिमा में पा लेना चाहती हूं तुम्हारी समग्रता को ....

जी लेना चाहती हूँ एक पूरी ज़िंदगी सिर्फ़ तुम्हारे जैसी  बनकर
एक छोटा सा लम्हा...
जिसमें हो सिर्फ तुम और में ...!!


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