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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

Rishta...

किसी भी रिश्ते को तुम अपनी तरफ़ से अपना 100% देना. पूरी शिद्दत से निभाओ बिना ये सोचे कि सामने वाला क्या कर रहा है?
कितना कर रहा है?

ताकि जब रिश्ता टूटे तो तुम सकून में रहो कि तुमने दिया था अपना सब-कुछ.ये उसकी बदक़िस्मती है कि उसे सहेजना नहीं आया.

तुम्हें एक पल के लिए बुरा लगेगा मगर यक़ीन मानो तुम टूट कर नहीं, सँवर कर निकलोगे. जिस भी रिश्ते से जुड़ोगे वहाँ सब ख़ूबसूरत होगा तुम्हारे साथ. वो सपने जो तुमने देखें हैं तुम्हारे वो सपने ज़रूर पूरे होंगे.

और हाँ सोच रहे होगे उनका क्या जिन्होंने नहीं निभाया रिश्ता.करके गए ग़द्दारी?तो उनका कुछ नहीं होगा.

वो अधूरे थे अधूरे रहेंगे. हो सकता है कि तुम्हारे बाद वो और सौ लोगों से जूड़े मगर ऐसे लोगो को पूर्णता कभी नसीब नहीं होती .वे भटकते रह जाते है..

पूर्णत्व की तलाश में..!

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