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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

तुम्हारा मेरे जिंदगी में आना ...

सुनो ,
तुम्हारा युं अचानक से मेरी जिंदगी में आना
मन में एक तूफ़ान सा लाया है ...मन की ये बैचैनी कैसे बया करे समझ नहीं पा रहे .. इसीलिए चुप से हो गए है ..

जिंदगी का एक ख़्वाब जो हमने शायद 
"होल्ड" पर रख दिया था ... देखो ना वो रूठ सा  एक कोने में पड़ा था उसे फिर से देखने के लिए मजबुर कर दिया है तुमने..
एक सफ़र का वो रास्ता उसके ना जाने कितने मोड़ है उनको तुमने अपनी तरफ़ मोड़ लिया है ...
अब हमे इंतज़ार है कब हम उस मोड़ से उस रास्ते पर चलना शुरू करे जिसकी मंज़िल

"तुम" हो ...!!

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