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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

ख्वाबों की एक डायरी ...

ख्वाबों की एक छोटी डायरी है
उसके हर नए पन्ने पर तुम्हें ढूंढ़ती रहतीं हूं ..

तुम पास हो या नहीं क्या फर्क पड़ता है
अब इस बात का, पर कुछ बातों कि वजह

आज भी "सिर्फ़ तुम" हो ..
क्या ये काफ़ी नहीं है ...!!



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