Skip to main content

Featured

Love

  बैठा हूँ उसी छत के कोने में, जहां कभी हम दोनों बैठा करते थे। वो चांद, वो सितारे, आज भी वहीं हैं, पर अब उनकी रौशनी कुछ फीकी लगती है.. तब कुछ बातें तुम्हारी होती थीं, और हम हल्के से मुस्कुरा देते थे.. तुम्हारी आंखों में शर्म का वो प्यारा सा एहसास, अब सिर्फ एक याद बनकर रह गया है.. वो चांद अब भी वही है, पर उसकी चांदनी में वो पहले सी चमक नहीं.. तारों की टोली भी अब कुछ अधूरी लगती है, जैसे हमारे रिश्ते की तरह कुछ कम हो गई हो.. कभी ये जगह हमें सुकून देती थी, अब बस यादों का भार लिए चुपचाप खामोश खड़ी है.. जहां कभी बातें होती थीं,वहा अब बस ख़ामोशियाँ घिरी रहती हैं.. यादों की गीली लकड़ियाँ, मन के किसी कोने में धीमे-धीमे सुलगती रहती हैं वो ठंडी आहटें अब भी हैं, पर वो गर्मी जो दिल को छूती थी, कहीं खो गई है आंखें अब पसीजती नहीं, वो आंसू भी शायद थक गए है.. बस एक भारीपन है, जो इस जगह से निकलने का नाम ही नहीं लेता.. अब इस छत पर आना, सुकून कम और दर्द ज़्यादा देता है.. वो समय तो बीत गया, पर यादें आज भी यहां की हर ईंट में बसी हैं.. शायद, कुछ चीज़ें वैसे ही रह जाती हैं— मद्धम, अधूरी, जिन्हें समय भी बदल नह

Death ....

कल एक सपना देखा मृत्यु बैठी थी घुटने मोड़े मेरे प्राणहीन देह के सिरहाने और उसके बगल में मैं भी बैठी थी घुटने मोड़े उसके साये का हाथ थामे....दोनों देख रहे थे इस देह के साथ किये जाने वाले तमाम प्रपंचों को..चीख़ते रुदन, कानों में राम नाम का पाठ, गंगा जल और तुलसी दल का रखा जाना उन सूखे होठों पर, पाँव के पास जलता-महकता लोबान, सिरहाने रखा तेल का दीपक, जिसकी बाती स्थिर थी, जैसे निश्चिंत हो कोई किसी कार्य सिद्धि के बाद.....तभी किसी ने छू कर कहा "बच्ची की देह अभी भी गर्म है"....माँ को देखा वो चूम रही थी माथा बार-बार, दोहरा रही थी कि "लौट के आना बिटिया"...कुछ पढ़ रहे थे कसीदें, कुछ कह रहे थे कि बाबाजी ने कहा था कि "आपकी इस बेटी की आयु बहुत कम है"...पर मुझे ध्यान आया उस नवजात बच्चे का जिसे एक रोज़ ऑटो में देखा था अपने सामने दम तोड़ते हुए, उससे तो कहीं अधिक जिया था मैंने....
पर कोई और भी था उस ख़ाली कमरे के दूसरे कोने में जो निहार रहा था मेरी मृत देह का चेहरा एक टक, एक आसूँ का कण भी उसकी आँखों में नहीं था, उसके चेहरे पर भी वही शून्यता थी जो मेरे मृत चेहरे पर थी...जैसे किसी मूर्तिकार ने पत्थर को तराश के गढ़ दी हो किसी सजीले युवक की मूर्ति....मैं जानती थी शायद उसे, मेरा कोई था वो शायद , उसने एक बार भी मेरी मृत देह से प्रश्न क्यों नहीं किया मेरे इतनी जल्दी जाने को ले कर, वो पूछता तो शायद एक क्षण को मैं मृत्यु से निवेदन करती पुनः मेरे जीवन को मेरी इस नश्वर देह को सौंपने के लिए, किंतु उसकी आँखों में कोई प्रश्न, कोई विषाद नहीं था, जैसे वो आया ही था विदा करने मुझे... कितनी अजीब बात है ना तुम्हारे साथ के लिए मैंने जब जिंदा थी तब संघर्ष किया और आज तुम मुझे विदा करने आए हुए थे .. सोचती हूं काश तुम तब मेरे साथ होते तो क्या मेरी देह इस तरह पड़ी होती .. नहीं शायद वो तुम्हारे बांहों के आगोश में कुछ नए सपने देख रही होती शायद .. पता नहीं .. पर हां तुम्हारे कुछ पल का साथ पाने के लिए मुझे मृत्यु को गले लगाना पड़ा ...
पर क्या अब मेरे  वो सपने जो मैंने तुम्हारे साथ के लिए देखे थे उनका कोई मतलब रहा नहीं .. मृत्यु आपको सारे बंधनों से मुक्ति तो देती ही है ...साथ में आपके सपने इच्छा आकांक्षा से भी मुक्त कर देती है .. मैंने अपने देह को पूर्णता भस्म होते देखा ..
गंगा में विलीन होते देखा ... मृत्यु को गले लगाए हुए स्वयं को सदा के लिए सोते देखा .. कभी एक सपना देखा था तुम्हारी बांहों में सोने का उस सपने को

गंगा में विलीन होते देखा ....!!

Comments

Post a Comment

Popular Posts