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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

इश्क़..

कभी सुबह सा मिला तो कभी शाम सा मिला

बेचैनी सिमटे कभी रात के आराम सा मिला 

कभी उनके नाम सा मिला

 तो कभी मुझ में मुझ सा मिला 

जो चाहता तो होती हर बाजी उसकी 

वो बादशाह होकर भी गुलाम सा मिला 


वक्त की मार ने हुनर थे उसके चुरा लिए

कभी बनके पागल आशिक बदनाम सा मिला 


किस्मत की कश्तियों ने थी डुबोई उसकी नाव थी 

वो किनारे पर पहुंच कर भी नाकाम सा मिला 


अक्सर बारिश में आसूं ओ को घोल कर पी जाता था कभी उस जाम सा मिला ..

खाक हो गया वो इश्क़ करते करते फिर भी इश्क की किताब में वो इश्क गुमनाम सा मिला ..!!

 

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