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तुम्हारी बेतुकी बाते
तुम्हें याद है, उस दिन हम यूंही किनारे पर बैठे थे तुमने मुझसे कहा था कि मुझे प्यार नहीं है पर तुम बस नाकाम कोशिश किये जा रहे हो प्यार तलाशने की और तुमनें मुझसे पूछा था,
तुम कहाँ रहना चाहती हो? तुम्हारी उन्हीं बेतुकी सी बातों का एक बेतुका सा सवाल था वो ..लेकिन मैंने भी तो तुम्हारा कॉलर पकड़ तुम्हें अपनी ओर खींचते हुए तुम्हारी आँखों में देखकर बोला था 'मैं बस तुममें रहना चाहती हूँ, तुम अपनी आँखों से मुझे खुदमें भरलो ना...! कितनी बेशर्म थी ना मैं..और तुम अवाक होकर बस देखे जा रहे थे ..और फिर से लेक्चर दिए जा रहे थे की मेरे अंदर अब भी बचपना भरा है, पर तुम उलझे हुए भी तो थे ,देखा था मैंने तुम्हे उस लम्हें में कभी कभी सिर्फ़ एक लम्हा, जानलेवा हो सकता है... ऐसे मौक़ों पर खुद को सही सलामत बचा ले जाना भी कम बड़ी बात नहीं...और तुम बस खुद को बचाने की नाकाम कोशिश कर रहे थे .. वैसे तुम और कर भी क्या सकते थे .. और हम हमेशा की तरह खिल खिलाकर हस रहे थे ..!
याद है न तुम्हे ...!!
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