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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

यूंही

 मैं मुसाफ़िर नही हुआ करता था फिर किसी ने जिम्मेदारियां रख दी पांव तले!अब चलता रहता हूं उन जिम्मेदारियों के साथ !एक दिन यूंही चलते चलते मिल गए हम समंदर से लगा कितना कुछ समान हम दोनों में ! वो समंदर छुपाए बैठा है कितने गहरे राज और मैं छुपाए बैठा हुआ खुद को ,उन जिम्मेदारियों को ,हम दोनो देते है खुशियां दूसरो को ! अच्छा तो दोस्त तुमसे मिलकर अच्छा लगा ! तुम कही जा नही सकते और मैं कही रूक नही सकता !


मुसाफ़िर हूं चलता रहता हूं !! 

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