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तुम

 तुम भागते क्यों हो? : डर लगता है? : किस बात का डर लगता है ? मुझसे, या खुद से? प्यार से… या मेरी आँखों में दिखाई देने वाली अपनी परछाई से? : हां शायद ??  : अच्छा ? अजीब हो तुम…अब तक भीगने का सलीका नहीं आया तुम्हें…बारिश से भी, मोहब्बत से भी ! तुम सोचते हो मैं तुम्हें बाँध लूँगी? है न ?? : कितने सवाल पूछती हो ?? सवालों की पुड़िया कही की ! चलो मैं जा रहा हूं !  : वापस भाग लिए तुम न ! : क्या मैं न! : कुछ नहीं 

ख़ामोशी

 चेहरे पर ख़ामोशी आंखों में मंज़र लिए फिरते हैं,

ख़ुदा जानता है हम खुद में समंदर लिए फिरते हैं...

हमेशा हमारे होंठों पर मुस्कुराहट सजी दिख जाएगी तुम्हें,

पर दर्द का तमाम शोर हम अपने अंदर लिए फिरते हैं

वो जो बैठा है दूर हमसे दूसरे शहर में,

कोई बताओ उसको सिर्फ उसकी खुशी के लिए मुस्कुराते नयन बंजर लिए फिरते हैं,

दूरियों का फ़र्क नहीं पड़ता हम पर दिखाते तो बहुत हैं,

पर अपने अंदर उससे मिलने की तड़प का हम भी अंबर लिए फिरते हैं,

ये जानते हुए भी कि उससे दूर रहकर जीना हो जाएगा मुश्किल,

जानबूझकर अपनी खुशियों के क़त्ल का खंजर लिए फिरते हैं,

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